Wednesday, February 7, 2018

एक नारी ने दिया सिकंदर को अच्छा सबक

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एक नारी ने सिकंदर को दिया अच्छा सबक

सिकंदर विश्व विजय के लिए निकला था I  जैसे-जैसे उसका विजय अभियान बढ़ता जा रहा था,  उसकी साम्राज्य विस्तार की  भूख  भी बढ़ती जा रही थी I  




वह इसी चिंतन में लगा रहता है कि कब, कैसे, किधर चढ़ाई की जाए ?  उसका संपूर्ण अमला भी इसी दिशा में सक्रिय रहता था I  एक दिन सिकंदर ने ऐसे नगर पर आक्रमण किया, जहां निहत्थी स्त्रियों के सिवाय कोई नहीं था I  पुरुषविहीन  इस नगर में आकर सिकंदर सोच में पड़ गया कि इन निहत्थी महिलाओं से किस प्रकार युद्ध किया जाए?




सोचते सोचते वह परेशान हो गया और उसे कुछ सुझाई नहीं दिया I   उसे बहुत भूख लगने लगी I  उसने कहा  - मुझे भूख लगी है I मेरे लिए भोजन लाओ I  कुछ स्त्रियों ने कपड़े से  ढकी  था लियां उसके सामने रख दी I सिकंदर ने कपड़ा हटाकर देखा तो  थालियों  में भोजन के स्थान पर स्वर्ण भरा था I  



भूख से व्याकुल सिकंदर ने कहा- यह सोना कैसे खाया जा सकता है?  मुझे  तो रोटियां चाहिए I  तब एक महिला ने उत्तर दिया-  यदि केवल रोटियां ही खाने के काम में आती होती तो क्या तुम्हारे देश में रोटियां  नहीं थी  कि तुम दूसरों की रोटियां छीनने  के लिए निकल पड़े ?




सिकंदर अगले ही दिन वहां से लौट आए I  उसने नगर के द्वार पर नगर की महान नारी से लिखवाया-  अज्ञानी सिकंदरपुर इस नगर की महान नारी ने बहुत अच्छा सबक दिया है I राज्य विस्तार की इच्छा धन लिप्सा से प्रेरित होती है और धन लिप्सा विवेक को हर लेती है I   

इसलिए  अपने सद प्रयासों से जितना मिले उसी में संतुष्ट रहना चाहिए I    

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