एक गांव में एक बुजुर्ग व्यक्ति रहता था ।
वह इतना ज्यादा कमजोर था कि खड़े रहते हुए भी उसके हाथ पांव कांपते थे ।
वह थोड़ा अडियल था,लेकिन दिल का साफ़ था उसके घर में दो बेटे थे, उनकी शादी हो गई थी ।
बुजुर्ग ने अपने जवानी के दिनों में बहुत मेहनत कर धन जुटाया था । उस धन से उसने सोना खरीद कर रख लिया था । बेटों को पता था कि बूढ़े के पास काफी सोना है ।
वह उसे देने के लिए अक्सर कहा करते थे। बुजुर्ग उनको मना कर देता था । बार - बार बोलने पर वह एक दिन सोना तोलने के लिए सुनार के पास तराजू मांगने गया।
सुनार ने कहा, 'मियां, अपना रास्ता लो । मेरे पास छलनी नहीं है ।' बूढ़े ने कहा, 'मजाक मत करो, मुझे तराजू चाहिए ।' सुनार ने कहा, मेरी दुकान में झाड़ू नहीं है ।' बुजुर्ग का धैर्य जवाब देने लगा, उसने कहा, 'मस्करी मत करो भाई, मैं तराजू मांगने आया हूं, वह दे दो, क्यों परेशान कर रहे हो ।' सुनार ने कहा, 'मैंने आपकी बात पहले ही सुन ली, मैं बहरा नहीं हूं । देखो, तुम बूढ़े आदमी हो । सूख कर कांटा हो रहे हो । तुम्हारा सारा शरीर कांपता रहता है । तुम्हारे पास जो सोना है ,वह भी कुछ बुरादा है और कुछ चूरा है ।
इसलिए तोलते समय तुम्हारा हाथ कांपेगा और सोना गिर जाएगा । इसके बाद, तुम फिर आओगे और कहोगे...... झाड़ू देना ।
और जब बुहार कर मिट्टी और सोना इकट्ठा कर लोगे, तो फिर छलनी मांगोगे, ताकि खाक को छानकर सोना अलग कर सको ।' सुनार ने आगे कहा कि मेरी दुकान में छलनीनहीं है ,
इसलिए मैंने दूरदर्शिता से कहा था कि तुम कहीं दूसरी जगह से तराजू मांग लो इससे दोनों को परेशानी नहीं होगी ।
सबक:- जो केवल काम के प्रारंभ को देखता है वह अंधा है परिणाम को ध्यान में रखने वाला ही सुजान है जो आगे होने वाली बात को पहले ही से सोच लेता है इसलिए उसे अंत में परेशान नहीं होना पड़ता
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